Hare Madhav

जीवन का असल सार : हरे माधव सत्संग- Hindi​

।। हरे माधव दयाल की दया ।।

 

वाणी हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी

 

।। मेरे रामराय माेको सतगुरु मेलो, तन मन वार करूँ अर्पण ।।
।। सतगुरु साचे तखत सुजाना, मन प्रेम रख हर पल धाे लूूँ ।।

 

सच्चे पातशाह पुरनूर सतगुरु के चरण कमलों में सच्चा प्यार सच्ची नीह प्रीत को दिल में बिठा, हम सबका अकीदा नमस्कार दण्डवत हो। आज के सत्संग की प्यारी मीठी वाणी भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की बेहद पुकार बेहद दीनता, खुद मालिक-ऐ-कुल होकर दीनता नम्रता के पुण्ज, सोझी दे रहे हैं।

 

मेरे रामराय माेको सतगुरु मेलो, मेरे रामराय माेके सतगुरु मेलो 
तन मन वार करूँ अर्पण, तन मन वार करूँ अर्पण 

 

साहिबान जी समझा रहे हैं कि आत्मा निर्बल असहाय है, छोटे बच्चों की तरह। जैसे छोटे से बच्चे के पास हाथ पैर हैं, मुँह हैं, पर न कुछ बोल पाता है, न चल पाता है। अगर भूख लगे तो हाथों में बल नहीं कि सीरा पुड़ी पकवान उठा के खा लें, दाँत भी नहीं हैं उस छोटे से बच्चे के। असहाय है, निर्बल है, पैरों से दौड़ने की चाह दिल में है, लहर हो रही है पर निर्बल है, पैर करवट भी नहीं ले पाता, हाँ! अगर माइयां सहारा दें तो कहीं थोड़ी बहुत आस बनती है। जब बालक थोड़ा बड़ा हुआ, हाथ पैर दाँत सब आए तो ज्ञात हुआ, कि पहले मैं असहाय था, मुझमें तो ताकत ही नहीं थी, निर्बल था, केवल और केवल निर्बल।

 

हमारी रूह भी प्यारे सतगुरु के बिना छोटे बच्चों की तरह निर्बल है, उस असहाय निर्बल रूह आतम की पुकार है, अपने प्रभुराया से, ऐ हरि प्रभु! मुझे अपना सच्चा रूप प्यारा सतगुरु मेलो-2, मैं तेरी बंदगी करूँगा, तुझमें मन को हर पल लगाऊँगा, दया कर मेरे रामराया मोको सतगुरु मेलो, मेरे रामराया मोको सतगुरु मेलो, बगैर सतगुरु के मैं दिन-रात तड़प रहा हूँ।

 

रूह कह रही है, मुझे वह दिन याद है, समय-क्षण भी याद है ऐ प्रभुवर! जब मैंने तुमसे कौल वादा किया था कि मुझे नर्क कुण्ड (गर्भ) से उबार, मैं तेरे प्रभुरूप सतगुरु की संगति में जा बंदगी का वादा पूरा करूँगी पर दुनिया जहान में आकर मैं रूह अपना कौल भूल गई, बिसर गई प्रभु साहिब की याद, मन को दुनिया में लगा दिया, नाफरमानी की, मन को दुनिया में लगाया जिससे जन्मां-जन्मों की ठोकरें खाईं आवागमन चौरासी में। ऐ प्रभु! तोहिं बिसार भूल कर इस रचना में मैंने देखा कि कोई भी मेरा सच्चा हितैषी नहीं है, मेरे साथ कोई आज रहा, कल चला गया, कोई साथ नहीं दे रहा है। जब इस रचना काल में मेरा सच्चा हितैषी कोई नहीं तो तेरे लोक में मेरे संग आखिर चलेगा ही कौन? रूह आतम विरह वियोग में प्रभुराया के आगे अपनी सारी कथा कह रही है, मुझे सतगुरु प्यारे से मिला, मैं उन प्यारे सतगुरु के दर्शन और श्री चरणों में मग्न होकर उनकी भगति करूँगी। रूह की करुण पुकार सुन हरिराया प्रभु स्व मानुष तन धारकर पूरन सतगुरु के रूप में धरा पर आ रूह को साधसंगत से जोड़ते हैं। जब रूह को प्यारे सतगुरु की शरण सत्संगति मिली, रूह के अंदर हरे माधव हरिराया के मिलाप की प्रीत जाग उठी, रूह फिर कह उठी अपने हरिराया सतगुरु से, तन मन वार करूँ अर्पण, तन मन वार करूँ अर्पण।

 

भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु अनन्य करुणा के पुंज, जो शरण में आते हैं उन्हें मन माया से छुड़ाते हैं, उनकी सार संभाल शरण में आते हैं, उन्हें मन माया से छुड़ाते हैं, उनकी सार संभाल करते हैं। आप साहिबान जी, बेहद अन्नय रहमतें शिष्य जगत पर अनवरत बरसाते हैं, जो कि बयां कैसे हों? यह तो अकथ की जुबां ही कह सकती है। सतगुरु मालिकां जी के अनन्त दया कुर्ब एहसान जीव जन्मों-जन्मों तक नहीं चुका सकता, गुरु की महिमा लाबयान है। प्रेमापूर्वक सतगुरु दर्शन करने से आत्मा में निर्मल शीतलता मिलती है, मन वस में होता है। सतगुरु मालिकों की शरण में ऐसी अनगिनत रूहें पवित्र पावन सतगुरु दर्शनों का महान उत्तम फल प्राप्त करती हैं। हरिराया सतगुरु का दर्शन करते करते, कमाई वाले शिष्यों की रूहें ऊपर चढ़ जाती हैं, अंतर आनंद में रूह मग्न हो जाती है। कई शिष्य अपने निज अनुभव बताते हैं कि प्यारे सतगुरु के दर्शन कर हमारा यह कारज रास हुआ, हमारे कर्मों के भार कटे, प्यारे सतगुरु के दर्शन कर ताप-पाप संताप मिटे। सो प्यारों! सदा नितनेमी बनें, सतगुरु दर्शन साधसंगत से जुड़ निर्मल करम करें।

 

साधसंगत जी! गुरु साहिबान जी फरमाते हैं कि यह संसार करम संदणा खेत है, ‘‘जो बोवोगे वही पाओगे’’, इस संसार रचना में अगर किसान ज्वार की खेती करेंगे तो ज्वार ही मिलेगा, अगर हरे मिर्च के पौधे रौपेंगे तो हरे मिर्च मिलेंगे, अगर जैतूनों के पौधे रोपेंगे तो जैतून ही मिलेंगे, अगर गुलाब के बाग लगाऐंगें, तो खुशबू के अधिकारी आप स्व होंगे, ऐसे ही जीव अगर अच्छे कर्म अपनाऐंगे, तो राजे बनकर इस दुनिया में आते हैं, थोड़े बहुत नेकी वाले कर्म किए, तो धन भी हासिल हुआ, कस्बों गांव की हुकूमतें हाथ में आ जाऐंगी, लेकिन संगतों! अच्छे कर्मां कों भोगने के लिए भी इसी दुनिया चौरासी में आना होगा, हाथों में झाड़ू की जगह हुकुमत की चाबी मिल जाऐगी, झोपड़ी की जगह महलों में रहने को मिलेगा लेकिन रूह बंधन मुक्त नहीं हो सकेगी।

 

पूर्व कर्मों के लेखों से ही इंसा की जिंदगानी का चिट्ठा बना है। वर्तमान के कर्म लेखों से फिर आगे की जिंदगानी का। सतगुरु शरण में रह सत्कर्म कर। अच्छे कर्मां के फल भोगने के लिए भी चौरासी जेल खानों में फिर फिर रूहों को आना होता है, स्वर्ग वैकुण्ठों में भी जाने पर हमें भिन्न-भिन्न पदार्थों को भोगने वाले रस मिलते हैं और उन स्वर्ग वैकुण्ठ भोगों के बाद भी पुनः-पुनः चौरासी में आना ही पड़ता है, इसीलिए प्यारे पूरण संत सतगुरु फरमाते हैं कि ऐसी सत्संगति से जुड़ो जो निबेरा करे, इन स्वर्ग-वैकुण्ठ, जन्म-मरण के घेरों से, इन घेरों से निबेरा पूरण सतगुरु शरण में जाकर ही होता है। मन का संग कर जीव कर्म बंधन में बंधे रहते हैं। पूरण सतगुरु का संग कर जीव कर्म बंधनों से छूट जाते हैं।

 

यह सारी की सारी रचना ही चाैरासी का जले खाना है, जिसमें से बाहर निकलने का एक ही दरवाजा है आरै वह दरवाजा है पूरण सतगुरु शरण, पूरण सतगुरु शरण में जाकर, हरिराया सतगुरु से प्रीत कर नाम का दान पाकर शबद व नाम की साधना द्वारा, इस संसार रूपी जले से छुटकारा प्राप्त हाे सकता है। उस एको पारब्रह्म मालिक का अपना बनाया हुआ यह कुदरती अटला कानून है, कि वह उस पूरण नाम के द्वारा ही मिलेगा और वह नाम वक्त के देहधारी भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु से ही प्राप्त होता है, यह कानून सभी के लिए है, देवी देवताओं, अवतारों के लिए भी है, मनुष्य शरीर में आकर श्रीराम और श्री कृष्ण जी ने भी सतगुरु शरण हासिल की है। संत कबीर जी ने कहा-

 

राम कृष्ण ते को बड़ो, तिनहु भी गुरु कीन ।
तीन लोक के नायका, गुरु आगे आधीन ।।

 

वक्त के भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु के बक्शे नाम एवं सतगुरु भगति के बगैर जीवात्मा चाैरासी के बंधनाें में फिर फिर आती रहती है, स्वर्गाें-नेर्कों की बेड़ियों में, कर्म जंजालों से वह छूट ही नहीं पाती।

 

शहंशाह सतगुरु बाबा नारायण शाह साहिब जी ने फरमाया-

 

गुरु अ बिना गत न, शाह बिना पत न

 

बाहरी हठधर्म या कर्मकाण्ड और बाहरी ज्ञान से भवसागर से पार हाेना असंभव है, क्याें करमगति जीव का पीछा ही नहीं छाेड़ती। परंतु इस करमगति का तोड़ है आरै वह है केवल सतगुरु भक्ति।

 

रूहों की करुण पुकार सुन आप हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबाजी सभी धर्मों की चहुँवर्णां की संगतों को अंतर्मुखता की राह पर चलने का उपदेश राहें रूहानी मार्ग बक्श रहे हैं, आज हरे माधव पंथ का ज्योतिर्मय प्रकाश देश-विदेश की संगतो को रूहानी उन्नति प्रदान कर रहा है, रूहें आंतरिक रूहानी भंडार पा ऊजल हो रही हैं, संगते धन्न-धन्न निहाल हो रही हैं, क्यों न हों, अनगिनत रूहों को सतगुरु चरणों में आंतरिक खुशी का आतंरिक आनंद का खजाना जो मिल गया है।

 

ज़िक्र आता है, 11 दिसबंर 2016 सतगुरु साहिबान जी की सत्संग दर्शन की परमार्थी यात्रा में रायपुर छत्तीसगढ़ की सगंताें पर दया रहमतें हुई। सतगुरु बाबाजी की प्रेरणा से 11 दिसबंर काे हरे माधव परमार्थ सत्संग समिति एवं सिंधु डॉक्टर्स फाेरम के तत्वाधान में निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयाजेन हुआ, जिसमें बैंगलोर, मुम्बई, रायपुर के प्रसिद्ध डॉक्टरों द्वारा सगंताें काे चिकित्सा लाभ प्राप्त हुआ। शाम काे आप हुजूरों की छत्रछाया में उन डॉक्टरों ने साधसगंत में बैठ सत्संग वचनाें, शबद भजन का रस पाया, सत्संग वचनाें के बाद सारी सगंतें दर्शन की लाईन में लग एक-एक कर सतगुरु साहिबान जी के श्रीचरणाें के नजद़ीक आ अपने मन की जिज्ञासायें, स्पिरिचलु क्वैशन पूछ रहे थे। रायपुर शहर के ही एक प्रसिद्ध डॉक्टर पी.एस.गाेधेजा सतगुरु श्री चरणाें में आए, डॉकटर के चेहरे पर लालिमा चमक थी, उनकी आँखों से आँसु बह रहे थे।

 

वे कहने लगे, हुजूर महाराज जी! जब आप जी सन् 2013 में यहाँ रायपुर शहर पधारे थे, तब मुझे बंदगी के गहरे नुस्खे बक्शे थे और अमृत नाम दिया था और कहा था कि इसका अभ्यास मेडिटेशन करता रहूं और तीन साल के बाद मैं अपना एक्सपीरियेंस बताऊँ। हुजूर महाराज जी, आपकी कृपा से मैंने गुरुनाम का अभ्यास किया, आपके नाम सिमरन मेडिटेशन से जो मैंने पाया है, मुझे नहीं समझ आ रहा, कि हाउ शुड आय ऐक्सप्रैस माय ऐक्सपीरियसं । बाबाजी! मैंने नामदान लेने से पहले न जाने कितने ही पंडित महात्माओं, कच्चे गुरुओं से मुलाकात कर, रूह के गहरे भेद पूछे, जब उनसे उपदेश मिलते ताे उनकी बातें मुझे वेदों उपनिषदों के पाठन की ओर ले जाती, हुजूर महाराज जी! I read so many books of almost all the religions, but I could not find the destination of my soul. When I came to Your Satsang, you just explained  me one thing that my soul was in deep sleep, the Lord inside me was not awakened. When a being comes in the shelter of a true living Master, the Master Satguru blesses him with the True Word- Naam Mantra. When the being keeps on meditating the True Word-Naam, at the same time focusing on the holy glimpse of the True Master, only then can the soul be awakened and unite with the Supreme Lord, Hare Madhav Lord. Babaji, as per Your supreme guidance, I meditated sincerely the Naam you blessed, then my soul and consciousness started to fly higher and higher in my inner world. Then I realized the ultimate truth of my soul and inside me I saw so many universes, stars, moons, suns, the whole cosmos and beyond inside me. I could hear the “Anhad Naad”, the music within me that never stops.

 

हुजूर महाराज जी! अब मेरे राेम -राेम में वह अनहदी नाद झंकृत हाे रहा है, मेरी रूह सुरति उस अकथ में लीन हुई, बलिहार मेरे सतगुरु बलिहार-

 

बल-बल जाऊं, बल-बल जाऊं माधव मेरे-2

 

आप साहिबान जी ने दया रहमत का सर पर हाथ रख वचन फरमाए, डॉक्टर जी! ये रूहानी कमाई अनुभव आपकी निज पुंजी है, इसे आरै बढा़यें, डॉक्टर ने कहा, हुजूर महाराज जी सब आपजी की किरपा रहमत है, मेरे परिवार मित्र भी साथ आए हैं, उन पर भी किरपा करें, वाे भी उस रूहानी ऊचाँई को प्राप्त करें। आप हुजूर साहिबान जी फरमाये, सफल हाकिम सतगुरु के पास जाे दवा है, वह सभी के लिए है, सांझी है। जीव साधसगंत शरण में आ नाम औषधि  प्राप्त करे, मेहनत करे, अभ्यास करे। अगर आप सिमरन अभ्यास नहीं कराेगे, नाम को कमाओगे नहीं, दवा औषध को रख दाेगे, ताे कर्मों का भार कैसे हल्का हाेगा, आतम, स्वस्थ, आनन्द दायक कैसे हाेगी, भक्ति प्रभु रस कैसे मिलेगा।

 

उस डॉक्टर ने अर्श के सच्चे हाकिम सतगुरु से विनय अर्ज की, हुजूर महाराज जी, सतगुरु के पास कौन सी दिव्य आँख है? जिससे वह भलीभांत हर जीव के कर्म काेष से वाकिफ हैं। आप हुजूरों ने मुस्कुराकर कहा, ऐक्सरे मशीन हॉस्पिटल में है? डॉक्टर ने हथजाेड़ कहा, जी बाबाजी। आप हुजूर जी फरमाये, अगर आपकाे शरीर के किसी भाग में जहाँ चाटे लगी या गांठे हैं या हड्डियां टूटी, ताे ऐक्सरे में आपकी चमडी़, मांस या रक्त नहीं आते, केवल हड्डियाें का फाेटो नजर आता है न। डॉक्टर ने कहा, जी साहिबान जी, हड्डियां जहाँ से टूटी हैं, ऐक्सरे में नजर आ जाती हैं, उसी हिसाब से दवा पट्टा या परहेज़ दी जाती है आपजी मदं-मदं मुस्कराकर फरमाये, इसी तरह पूरण संत सतगुरु के पास वह परम दिव्य आँख है, जिससे जीव की देही के अदंर जाे अमृत अदृश्य रूप है, वह भलीभांति जानता है सतगुरु, अब कितनी बारीकी से जानता है, इसका अंदाजा लगाना कठिन है, यह सब गहन है, गहन ही गहन है।

 

बस वह विसाले पूर्ण है, पूर्ण शहंशाह सतगुरु, शिष्याें के अदंर, जहाँ रब सोया है, उन घटों में वह जगाने के लिए भजन सिमरन का नुस्खा देता है, बल बक्शता है। शिष्याें को सवेा सत्संग का शौक देता है, जिससे उनकी रूह जागृत हाेकर अखण्ड की निजता काे पा सके, हथजोड़ उस डॉक्टर ने कहा, आप हुजूर महाराज जी के अनन्त कुर्ब, मेहर कि आप अर्शी हाकिमाे ने हम सब आत्माओं को नाम औषध का भेद बक्शा है, जिससे आत्मा काे स्वस्थता मिलें। दया करें, मेहर करें, हम इसे कमाऐं। साधसगंत जी! आप बाबलों के श्रीचरणाेें में सत्य के खाेजी आते हैं, उनके मन में जाे जिज्ञासा है, आपजी दया मेहर कर जिज्ञासाओं काे सुन उपदेश देते हैं, जिससे जीव जाने, कि प्रभु क्या है, आरै उसमें कैसे एकाकार हाे सकें।

 

आप मालिकां जी अपनी धुर की वाणी द्वारा तमाम जनमानस को सतगुरु चरणों में पुकार की ऊँची कला सोझी बक्शते हुए, हरे माधव मेहरबान अपारे की महिमा का यूं बखान कर रहे हैं, जी आगे-

 

।। मेेरे रामराय माेको सतगुरु मेलो, मेरे रामराय माेको सतगुरु मेलो ।।
।। दास ईश्वर विनय करत है, हरि जीऊ भाव भक्ति सतगुरु शरण छांव बक्श ।।
।। हरे माधव मेहरबाना अपारा, सतगुरु शरण छांव बक्श ।। 

 

जब पारब्रह्म पुरुख ने रूह को इन्सानी देही बक्शी, जिस उद्देश्य मकसद के लिए उसे धरा जगत पर भेजा गया, रूहें उस मकसद के विपरीत काल के क्षणभन्गुर पदार्थों, धन-राज में लिप्त हो, अन्य भी मन के कहे कर्म करती गई, हिसाब यह ऐसे बना जैसे बच्चे स्कूलों में पढ़ने गए, अनुभवी प्रोफेसर ना मिला, तो अपने मन कहे सगं ति की, मन के कहे पढा़ई की और अपने जीवन को मनमति की राह पर ढकेल दिया और जब अनुभवी प्रोफेसर मिले तो उन बच्चों की दुनिया संवर गई। आप बाबाजी रूह को सच्ची सीख दे रहे हैं कि सदा यह पुकार करें-

 

।। मेेरे रामराय माेको सतगुरु मेलो, मेरे रामराय माेको सतगुरु मेलो ।। 

 

जब रूह को कमाई वाले पूरण पुरुखों की चरण शरण मिली, दर्शन भी किया पर न तो सच्ची बंदगी की, न तार जोड़ी, न उनसे सच्चा प्रेम किया, केवल मन के हिसाब-किताब बनाती रही।

 

तब ऊँची कमाई वाले प्यारे पूरन सतगुरु ने जगत की रूहों को तारण हेतु अमीरल वचन खोलकर कहे, सारे बच्चों पर, करूणा की बरखा बरसा दी जो आज भी अनवरत बरस रही है, जिससे रूह ऊपरी गगन मण्डलों की सैर करने लगी।

 

जीवात्मा को चाहिए कि सदा पूरण गुरु की टेक में रहें अर्थात् साधसंगत शरण में रहें, तन मन धन से सतगुरु परमेश्वर को एको जान सेवा करम करें लेकिन हम सबका मन दुनियावी मान शान और मायावी सुखों में फंसा है, इंद्रीय सुखों-विकारों, में फंसकर काल शैतान से जुड़ा है और सतगुरू, अमृत नाम से तुड़ा है और यूं ही जीवन समय व्यर्थ गंवा रहा है। ऐ जीवात्मा! सारा दिन संसार की उलझनों में, माया के पीछे कमाने में गुजार देते हो, क्या इसी वास्ते पारब्रह्म ने तुम्हें उत्तम जीवन दिया है? पूरण सतगुरु साधसंगत में आकर जीवन को सही रूप से जीने की कला सीखो, असल उद्देश्य को पहचानो। नित्य हमारा यह मन नए बहाने व आलस्य करता है कि हमारे पास भजन भक्ति के लिए, सतगुरु सेवा के लिए समय ही नहीं, मन की मति के कहे समय एवं स्वांस व्यर्थ ही दुनियावी रस भोगों में गंवा रहे हैं पर यह सर्वदा याद रखें, ऐसे मनमुखों के लिए चौरासी जेलखानों के दरवाजे खुले ही हैं तभी संत नारायण स्वामी जी हमें सचेत कर रहे हैं-

 

नारायण जब अंत में यम पकड़ेंगे बांहि ।
उनसे भी कहियो जरा, हमें तो फुरसत नांहि ।।

 

हम सतगुरू मालिक की ना सुन मन की पाठशाला में पढ़ते-पढ़ते अपनी बहुकीमती उत्तम जन्म व समय को यूं ही गंवा देते हैं, गंवा भी रहे हैं, मान-शान को कमाना, तामसी आहार खाने-पीने में, झूठे दुनियावी रस विकारी-भोगों में, रिश्तो-नातों में दिल को फंसा कर निजता को वास्तविकता को भूल जाते हैं पर ऐ प्यारों! याद रखो, काल शैतान तो दस्तक देगा ही, वह आज नहीं तो कल तुम्हें लेने आयेगा ही।

 

तब तुम काल से लाख मिन्नतें करो, रोना-धोना करो, अकड़, चालाकी, होशियारी करो, वहाँ एक न चलेगी, यह चार-पाँच फुट लम्बा देही का आशियाना इक दिन खाक होगा ही। जैसे हम रोज खाना खाते हैं, वैसे ही काल का भोजन यह देही है, एक तत्व से लेकर पांच तत्व तक का, सभी काल का निवाला बनते हैं, यह काल ताे बारी बारी से सबकाे ले जायेगा।

 

ऐ रब के अंश! यह काल तो हमें खा ही जाएगा, क्यों न इसके पहले ही ज़रा चेतें, नित्य-नियम से साधसंगत में आएं, हरिराया सतगुरु श्रीचरणों की सेवा कमाएं, सत्संग में पाबंदी से आएं क्योंकि यह मन तो नित्य हमें भुलाता है, नए-नए बहाने खोजता है साधसंगत में न जाने के लिए मन सेवा में भी आलस्य करता है, कि आज नहीं कल से सेवा में जायेंगे, आज सत्संग नहीं जा रहे, कल से जायेंगे, आज यह अमुक कार्य है, आज सिमरन नहीं कर रहे हैं, कल से करेंगे। ऐसा कह हमारा यह मन हमें ही ठग लेता है और हम सब ठगे जा रहे हैं पर ऐ सयाने बुद्धिजनों! साधसंगत सेवा के लिए तो कह देते हैं, आज नहीं कल, पर क्या काल को कह सकेंगे कि आज नहीं कल। यह यम काल जब हमें लेने आए तो ज़रा उनसे भी कहियो कि मुझे तो फुर्सत नाहिं-

 

नारायण जब अंत में यम पकड़ेंगे बांहि ।
उनसे भी कहियो जरा, मुझे तो फुरसत नांहि ।।

 

नहीं प्यारों! यह नहीं हो सकता, काल नहीं रुकेगा, आपका मन हो या न हो पर यह आपको ले ही जायेगा। सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी भी सिंधी अल्फाज़ो में फरमाते हैं-

 

जडहिं काल कूल्हे थे काहे थो, तडहिं कोई कीन छडाए थो
न कि डिहं डिसे न कि रात डिसे, न कि विरह संधी बरसात डिसे
न कि बार डिसे न जवान डिसे, न कि घोड़ीअ ते हसवार डिसे
जिन सतगुरु जी आ आटे वती, तिनजी अतं सुहेली सफली थी,
वठण पाण तिनखे मल्लाह थी सतगुरु अचन, जमदतू तिनखां परे था भडन।

 

इस काल रूपी जगत का सहारा लाेगे ताे बंधनाें में फंसे रहाेगे लेकिन हरिराया सतगुरु का सहारा लाेगे ताेे बंधनाें से मुक्त हो जाआगे। परम अक्षय जीवन की बात ताे सदा पूर्ण संत कहते हैं, काफिला ताे जिन्दगानी का उठता है, कूँच तो दुनिया से करना ही पड़ता है, इस सराय काे अपना घर मत समझाे, रात ठहर गए, ठीक है भाई, सुबह ताे बाेरिया बिस्तर बांध ही लेना पड़ता है, यहां रहना थिर नहीं है, यहाँ रहना थिर नहीं है। यहाँ इस जीवन रूपी सराय की दीवाराें काे रगंते रहाेगे, जिन्दगी भर, इस देही रूपी बुत काे सजाओगे, संवारागे फिर भी तुम्हें ख़ाक हाेने से कोई नहीं बचा सकता, तेरेे अपने ही तुझे मरघट छोड़े आयगें, इसी वास्ते जीते जी इस सराय का उचित उपयागे कर लाे, केवल इस शरीर की जिन्दगानी में मत उलझे रहाे, थाेड़ा जागाे, सुलझाे, इस शरीर से ऊपर उठाे, 50, 80 या 100 साल इस देही में रहना है, लेकिन अनन्त काल की तुलना में इन 100-50 सालाें का क्या मूल्य, एक रात से भी कम है, दिन जाते देर कहाँ लगती है, पकड़ में समय कहाँ आता है, मुट्ठी में समय काे नहीं पकड़ा जा सकता, तमाम उम्र यूं ही बह जाती है और बह रही है। दुनिया आज से नहीं, आरंभ से ही सरायखाना है, धर्मशला है, पर हमारा मन इसे सराय मानने को तैयार है ही नहीं, उलझन तभी बनती है। हुजूर साहिबान जी कहते हैं कि पहले इस दुनिया को सराय मानो, फिर हम तुम्हारा मन स्थिर कर देंगे। हुजूर सच्चे पातशाह जी, जीवन शरीर के क्षणभगुंरता के वैरागय वचन बक्श रहे हैं जी, आप स्वयं देखें, आप जिन दांतो से बड़े से बड़ा खाद्य पदार्थ चबा लेते हैं, वह समां भी आता है, जब आप इन दांतो से पतली दलिया भी नहीं खा पाते, जिन आंखो से बालपन एवं युवावस्था में सैकड़ों किलोमीटर दूर नगर या वस्तु पदार्थ कुदरत को निहार लेते थे।

 

वह समां भी आया वृद्धावस्था का, जब इन आंखों से हम बगल में बैठे अपनों को ही नहीं पहचान पाते। जिन पैरों से हम बहुत तेज़, बहुत तेज चल लेते थे, दौड़ लेते थे, खेलकूद कर लेते थे, फिर वह समा भी आया जब चलने के लिए छड़ी का सहारा एवं उठने-बैठने के लिए अपनों का सहारा चाहिए। स्व विचार करें, जीवन बहता जा रहा है, जीवन बहता जा रहा है, फिर भी सुध नहीं। जागो, अब तो जागो। ऐ रब के अंश! देही टूटी-फूटी झोपड़ी सम है, अब आप भी इसे स्वाहा होने से रोक नहीं सकते। जी यह देही उत्तम तब ही है, जब आप इसके स्वाहा होने से पूर्व पूरण साधसंगत में जाकर अपने आतम के फूल को खिलाओ। ऐ प्यारे! इस देही की, जीवन की कद्र करो। मृत्यु से पहले हमारी रूह का अकह परमात्मा में एकाकार होना ही हमारी मानुष देही का मकसद है। ऐ जीव! क्या तुझे उस मकसद का जरा भी ख्याल है।

 

तुम सारा जीवन नाशवान पदार्थां के पीछे लगा देते हो, उन्हीं में मोह बिठा उन्हें ही सत्य मान बैठते हो। फिर अंत समय में जो तुम भजोगे वही तुम्हारी गत होगी, वैसा ही जनम मिलेगा, 

 

अंत जो भजे सो गत होए साधो, अंत जो भजे सो गत होए साधो।

 

भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी रब्बी वाणी में जीव के अंत समय की गति का खुलासा कर रहे हैं-

 

अंत जो भजे सो गत होए साधो
अंते जो नाम भजे, निर्मल मत होए साधो
अंते जो भजे धना, सर्प जोन रोले
अंते जो जम जमीने मंदिर भजे, भूतै कूकर बिच्छु होए फिरै
अंते काल जो भजे माधव, जाए बसे आतम अविरल मुकामा
अंते जो भजे मैं मैं, रावण कंस ज्यों गत होए
कहे ’दास ईश्वर’ भजो हर पल भजो स्वांस-स्वांस
नाम गुरू शबद अराधौ, हरे माधव राम निर्वाणा

 

हरे माधव प्रभु की प्यारी संगतों! चर-अचर जितनी तमाम योनियाँ हैं, सबसे उत्तम योनि इन्सानी बुत है। देवी-देवा जन भी इंसानी जीवन के लिए तरसते हैं, अब अगर इंसानी जीवन मिले और भजन-सिमरन पारब्रम्ह प्रगट पूरण सतगुरु की शरण-प्रीत, नाम प्रेमामय बंदगी मिले, तो ही इंसानी जीवन उत्तम श्रेष्ठ रतन तुल्य बन पाता है, वरन् आज इंसान ने तो अपना जीवन कितना दुखमय बना लिया है। हम सभी बड़े खुशनसीब भागां वाले हैं कि हमें हरिराया सतगुरु मिले हैं भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु मिले हैं। अंतरमुखी मारग, सच्चा अंदरूनी नाम रतन बक्शा, भाव भक्ति का मंजन भी कराया है। आप सभी इसे कमाऐं, इसे कमाऐं। जाे स्वासं क्षण-पल, दिन बीते साे बीते। ऐ मनुवा अब जागाे, ऐ मनुवा अब जागाे। जाे स्वांसे शेष हैं सतगुरु नाम, सतगुरु भगति में लगाओ, जाे सगं चलना है उसे कमाओ, मन लगे न लगे प्रतिदिन सतगुरु भजन में बैठो। सतगुरु मेहर करूणा से मन रमेगा, सिमरन पकेगा, अमृत आनदं मिलेगा।

 

साे सदा श्री चरणाें में यही पुकार झोली फैलाकर करें, ऐ मेरे हरे माधव बाबा! अपने श्री चरणाें की भगति दे, हमारे कर्मों काे न देख मेरे मालिक अपनी मेहर कर, अपनी मेहर कर, हम बड़े ही मैले गदंले हैं, हमें अपनी चरण छाँव बक्श, हमें अपनी चरण छाँव बक्श। दया कर सच्चे पातशाह, दया कर मेरेे हरे माधव दाता।

 

।। दास ईश्वर विनय करत है, हरि जीऊ भाव भक्ति सतगुरु शरण छांव बक्श ।।
।। हरे माधव मेहरबाना अपारा, सतगुरु शरण छांव बक्श ।।

 

हरे माधव  हरे माधव हरे माधव

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