|| हरे माधव दयाल की दया ||
वाणी हरिराया सतगुरू बाबा ईश्वरशाह साहिब जी
।। हरिराया जन्म मरण रचाया, सतगुरु प्यारे ने अजन्म कराया ।।
।। हरिराया माया मद जाला जीवन विकारी रंग लगाया ।।
।। सतगुरु साचे अमिरल पिलाया, भाव प्रीत निर्मल कराया ।।
।। हरिराया लख बणायी चौपड़, साचा सतगुरु चौपड़ तोड़ी अजूनी रंग फैलाया ।।
अकह भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु महाराज की शरण ओट पनाह में बैठी संगतों! आप सभी को सतगुरु पर्व की अनंतानंत बधाईयां।
हरे माधव हरिराया के प्रगट रूप सच्चेपातशाह जी के चरण कमलों में निह प्यार, श्रद्धा भक्ति स्वीकार होवे। हे सच्चे पातशाह जी! हमें अंतरमुखी सतगुरु बंदगी की बरकत, अटूट अडोल विश्वास दें। भाव-प्रेेम में हमारी आतम भरपूर रहे, दया करें, मेहर करें, हम प्रीतवंतो की अर्जियां कबूल करें।
संगतों! यह पवित्र निर्मल वाणी आप हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिबान जी ने प्रभुमय भजन मुख से 12 अप्रैल 2017, बुधवार दोपहर 01ः45 बजे गुरु दरबार साहिब में फरमाई-
हरिराया जन्म मरण रचाया, सतगुरु प्यारे ने अजन्म कराया
हरिराया लख बणायी चौपड़, साचा सतगुरु चौपड़ तोड़ी अजूनी रंग फैलाया
साधसंगत जीयो! परमात्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति की, पाँच तत्वों के इंसानी बुत भी गढ़ दिए व मन पर माया का जाल भी बुन दिया, जिसमें आठों पहर असंख्य संकल्प-विकल्प चलते ही रहते हैं। इससे मन-आतम दुर्बलता व संताप के अंधकूप में गिरती चली जाती है। करूणासिंधु हरिराया सतगुरु जीव आतम की यह दयनीय दशा देख, अपना विरद वाला हाथ दे कर उन्हें मन माया के गहरे गर्त से निकाल, परम प्रकाश से आलोकित ऊँचे गगन रूहानी मंडलों की चढ़ाई के लिए भजन-सिमरन का अंतरमुखी दिव्य भाव पथ देते हैं। ऐसे परमत्वमय सतगुरु की मंगलकारी शरण संगति में सदा आनंदमग्न हो भगति भाव में भीगना सतगुरु पर्व का महातम है।
सतगुरु पर्व अर्थात् हरे माधव परम प्रभु की अकह प्रकाशी ज्योत का प्रगट होना। धन्य है वह थांव, वह वंश जहाँ पर भजन सिमरन के भंडारी परमत्व सतगुरु प्रगट होते हैं, वे चैतन्य जागृत सिद्ध पुरुख प्रतापी दाता, अनन्त-अनन्त ऐश्वर्य, शाश्वत इकनिष्ट माधुर्य में रमण करते हैं। कमाई वाले सतगुरु की शरण मिलना भी भागों वाली बात है। आप हम सभी बड़े खुशनसीब भागांवाले हैं, कि हमें अकह प्रकाशी रूप सतगुरु, अनन्त गुणों के भण्डारी सतगुरु, भजन सिमरन के परम भण्डारी सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की शरण टेक ओट मिली है जो सर्व सांझे जीवों पर बेहिसाब करुणा की त्रिवेणी पल-पल बहाते हैं, प्रीत भाव का पवित्र बल दे, जीवों को उबारते हैं।
मनमाया के थपेड़ों में पड़, जीव आतम की हालत क्षत-विक्षत हो गई है। पूरण हरिराया सतगुरु अपनी ईश्वरीय दयालुता हमारे बीच प्रगट करते हैं और आत्मओं को नित्य बल देकर, पूरण अमृत नाम की शान से नवाजते हैं। साचे पूरन सतगुरु की शरण, पवित्र दर्शन, हमारे अंदर की सोई शक्ति, भाव-प्रतीत को जगाकर, देवामय कर देते है। हरिराया पूर्ण सतगुरु का भजन प्रभाव, अतुल्य शाश्वत प्रभाव, भगत के हृदय पर भीना-भीना आनन्दित हो बरसता है।
एकस कमाई में लीन, कमाई वाले परम तत्व सतगुरु पुरुख के पावन पवित्र दर्शन करने का फल यह होता है कि हमारा मन अपने आप शांतमय, भक्तिमय, प्रेमामय, दुखभंजनमय हो जाता है और हमारे मन पर शुद्ध भाव का असर पड़ता है, हम परम तत्व के शब्द खण्ड में आ जाते हैं। कमाई वाले हरिरूप सतगुरु की शरण में हमारा मन, हमारा ध्यान, हमारी आतम एवं तवज्जू, अगम हरे माधव परम पुरुख की ओर उड़-उड़ जाती है। पूरण हरिराया सतगुरु जीवात्माओं को मुक्त गगन मंडलों में ले जाने के लिए हाथ पसारे खड़े हैं। ऐ जीवात्मा! सतगुरु शरण दीवान में आकर अपना हाथ उनके हाथ में दे दो।
The Perfect True Master is ever ready to embrace us and take beings to the higher divine realms. O being! Come under the pious shelter of the Lord True Master and dedicate your soul to Him.
हरिराया सतगुरु की भजन कमाई के प्रभाव का भरपूर लाभ कमाने के लिए, जीव की पात्रता होना निहायत ज़रूरी है, वरन् अमृत महासागर के पास रहकर भी, जीव प्यासा का प्यासा ही रह जाता है।
साधसंगत जी! संसार में आप देखो, माता-पिता की चाह शौक होता है कि बच्चे स्कूलों में पढ़ने जाएं और खूब पढ़ाई कर सार सच्ची राह पर चल उन्नति करें। वणज-व्यापार में भी कारोबार करने वालों का उद्देश्य एक ही होता है कि कोई ऐसा सौदा मिले जिससे वे ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफा (लाभ) कमा सकें। जीव आहार भी ग्रहण ऐसा ग्रहण करना चाहता है जो पौष्टिक व स्वादिष्ट हो, जो वह पचा सके, यानि जीवन के हर एक क्षेत्र में इंसां सच्चा सौदा, खरा सौदा करना चाहता है। पूरण हरिराया सतगुरु का ध्येय यही होता है कि जीव सच्चा शाश्वत लाभ कमाए। साचा सतगुरु अपनी पावन पूरण शरण पनाह देकर जीवों के कर्माें का बोझ हल्का कर देता है, मनों को निर्मल करता है पर याद रखो, जब तक पूर्ण कमाई वाले सतगुरु की संगति, बदंगी और सेवा शुद्ध भावना से नही करते, तब तक आत्मा सच्चा शाश्वत लाभ अर्जित नहीं कर पाती, अकह दरगाह मेें नही पहुँच पाती।
जब से धरती, सूर्य, चंद्र-तारे आदि समस्त रचना हरिराया रचनाकार ने बनाई है, तब से एक ही विधान, एक ही संविधान, एक ही अध्यादेश व्यापक रूप से पास हुआ कि जब तक आत्माओं को पूर्ण पुरुख, सतगुरु कामिल रहबर, अकह लोक वालों की संगति प्राप्त नही होगी, तब तक आत्मा निज दरगाह में नही पहुँच सकती और जनम-मरण में आती रहती है। इसी वास्ते साहिबान जी वाणी में फरमा रहे हैं-
हरिराया जन्म मरण रचाया, सतगुरु प्यारे ने अजन्म कराया
हरे माधव यथार्थ संतमत वचन उपदेश 121 में सतगुरु महाराज जी स्नेही वचन फरमा रहे हैं, प्यारों! भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु द्वारा बक्शे तत्व नाम के प्रसाद को लगन प्रीत से जप-जप कर आप सभी सतगुरु प्रसाद के अदृश्य इकरस प्रभाव को पा सकते हैं। बाबा देखो! हृदय का जनम हुआ, दिल का जनम हुआ, बुद्धि का जनम हुआ पर ऐ प्यारों! इन सबके ऊपर, इस देही के अंदर, शरीर के अंदर, बुत के अंदर कोई प्रकाश ज्योति ऐसी है जिसका जनम नहीं हुआ, वह जन्म से पहले ही मौजूद थी, वही परम ताकत हर इक उपजे अंग को टेक आसरा दे बैठी है।
साहिब जी सत्य वचन फरमा रहे हैं, हरी प्रभुराया जो सारी रचना को ओट दे रहा है, वह युगांतरों-कल्पों से इस देही के अंदर गहन से गहन विश्राम में है, खुद भी गफलत में सो रहा है और जीयरा भी सो रहा है। हरे माधव प्रभु की प्यारी संगतों! अब कौन जगाए सुत्ते प्रभु को और सुत्ती आतम को-
सतगुरु साचे अमिरल पिलाया, भाव प्रीत निर्मल कराया
हरिराया लख बणायी चौपड़, साचा सतगुरु चौपड़ तोड़ी अजूनी रंग फैलाया
यही एको विधान संविधान है कि जागृत सतगुरु पुरुख ही जगा सकते हैं, उथु जागु जीयरा, जो कि शहंशाह बाबा माधवशाह साहिब जी के वचन हैं-
उथु जागु मुसाफिर जियड़ा, तोखे निंड्रड़ी न होढ़े
वेठो आहीं वाट खां, पहिंजो मुंह मोड़े
वाट लहिंजैं ओहड़ी, प्यारा देश अगम जी
हमारे अंतरमन में वह मौजूद इकरस प्रकाश ज्योति जरूर है पर हमने न वह भाव रखा, न भगति न बंदगी की वादी में गए और ना ही बाबा! हम जीवों ने इकरस की ओर जाने वाली प्रीत, सतगुरु संगत श्रद्ध़ा, स्नेह चाव से की, अब कैसे वह अमृत भाव भगति का टिकाव हो? गुरु महाराज जी फरमा रहे हैं, बाबा! ऐसी अंतरमुखी निर्मल भगति कर, गुरु प्रसादी प्रीति धर, अपने दिल में सतगुरु रूपी ताकत का प्यार चंद्र चकोर की न्याई रख तो दुनिया के जड़ प्यार के तंदे कटें। कामिल पुरुख हरिरूप सतगुरु जो कि परम तत्व, परम दयाल, बेहद इकरस से भरपूर पुरनूर हैं, वे तेरी आतम को उड़ा ले चलेंगे अपने निहचल हरे माधव निजघर की ओर।
हरे माधव यथार्थ संतमत वचन उपदेश 124 में हाजिरां हुजूर सतगुरु महाराज जी फरमाते हैं, सूर्य उग रहा है, ठंड में तपिश दे रहा है, फिर जा रहा है, फिर चंद्रमा उग रहा है, शीतलता दे रहा है, उनकी किरणों की संगति कर बूटे हष्ट-पुष्ट हो रहे हैं। ऐ जीयरा! कामिल पूर्ण सतगुरु की सोहबत कर, थिर भजन सिमरन के मस्तानी खुमारी में मगन सतगुरु की शरण संगत पकड़। उनकी पनाह प्रीत में जागने के भाव-स्वभाव रखो एवं अपने मन को चरण कमलों के ठौर में टिकाओ। सोए हुओं की संगति, सोना ही सिखायेगी और जगे हुओं की संगति, हर पल कोई न कोई वाणी-वचन, रब्बी इल्लाही मुख से शस्त्र की न्याई, तेरे घट में अज्ञान पर प्रहार, द्वैत पर प्रहार, अभाव पर प्रहार, गफलत पर प्रहार ज़रूर करेगी और बाबा! वो वचन संजीवनी बूटी के रूप में आपकी आतम को लगेंगे जरूर पर कभी आप उसे भुला देते हो कभी पकड़ लेते हो। छोटे बाल-गोपालों की तरह चिल्लर टाफियों को पकड़ लेते हो पर थोक नोटों का आपको पता ही नहीं।
सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी फरमाते हैं, ‘‘भारी कमाई वाले सच्चे पातशाहों की शरण में आने से जीव डरता इसलिए है क्योंकि उनके कर्माें में यह जागना नहीं लिखा है और जिनके भाग्य में लिखा है वे जरूर जागेंगे, आज नहीं तो कल।’’ सत्संग शबद वाणी में समझाया गया-
हरिराया लख बणाई चौपड़, साचा सतगुरु चौपड़ तोड़ी अजूनी रंग फैलाया
बाबा! हरिराया ने चौपड की रचना की है, यानि जितनी भी चौपड़ की बिछात है, जितनी भी गलियां हैं, उनका निर्माणकर्ता तो वह पारब्रम्ह आप ही है, ज़मीनकर्ता भी वह आप ही है और चौरासी जेलखानों को बुननेवाला भी वह पारब्रम्ह आप ही है। कमाई वाले साचे भजन सिमरन के भंडारी धुर से प्रगट होते हैं और उन्हीं के हथ चौपड़ चौरासी जेलखानों में बंद रूहों को निकालने की चाबी है। रचना में यह अटल साझेदारी सच्चाई है, ऐसे हरिराया सतगुरु के वचनों पर चलकर अपने बंधनों को छुड़ाना, यही सतगुरु पर्व का महातम है।
सत्संग की धुरवाणी में फरमान आया, जी आगे-
।। हरिराया छुप लुक भरमा, मैं खोज-खोज ताको भरमा ।।
।। मैं बलिहारा सतगुरु पुरुख पर, तन मन वार सारे द्वंद मिटाए ।।
।। बिन सतगुरु मन का रोग न उतरै, नाहिं अवर बिन सतगुरु के कुंजी हथ ।।
।। सतगुरु आखन सुरति दरशाया, अंतर घट में नूर खिलाया ।।
सतगुरु साहिबान जी फरमाते हैं, जीव इस चौपड़ जगत को बनाने वाले प्रभु हरिराया को खोजने के अनेकानेक जतन करते रहते हैं-
हरिराया छुप लुक भरमा, मैं खोज-खोज ताको भरमा
बाहरमुखी सिद्धांतों को पकड़, कर्मकाण्डों, हठधर्माें, कच्चे गुरुओं आदि का सहारा लेकर जीवन भर दौड़ बनी रहती है बाहर ही बाहर जड़ संसार में। कहाँ-कहाँ नहीं खोजा हरिराया प्रभु को, पर्वतों, गुफाओं, कंद्राओं, वनों, तीर्थ स्थानों में पर हरिराया का नामोनिशां कहीं मिलता नहीं अपितु जीव स्वयं ही भरमों में उलझ अपनी हालातें बिगाड़ लेते हैं। ऐसों की दशा देख हाजिरां हुजूर साहिबान जी ने हिदायती रब्बी वाणी में फरमाया-
मैं ढूंढ थका तिसु राम न्यारे जी को, जाको अन्तर माहिं बसा
गुर से मैं जब नाम लिया, नाम सुनत मन माहिं प्रकाशा
नाम गुरु का मीठा लागे, नाम गुरु ते पाया सब कुछ
तीरथ ढूंढे जंगल खोजत, खोजत केते बीया बाना
जोग में वो नाहीं मिलया, भोग में वो जाको नहीं मिलया
दास ईश्वर अन्तर मिलया, जब गुरु शबद ध्यान लगायो
बिना भजन सिमरन की कमाई वाले पूरण सतगुरु के जीव चाहे कितने भी उपाव जतन कर ले, सब कोरे रह जाते हैं, यह हम सब अपने जीवन में भली भांति जाँच-परख सकते हैं पर पारखी आँख भी होना ज़रूरी है क्योंकि आप हर पल कोई न कोई मन के छियानवे करोड़ विचारों से सौदे करते रहते हैं। जब तक पात्रता, पहचान व सतगुरु प्रेमाभक्ति ना हो तब तक हम कोसों दूर रहते हैं।
ऐ दुनिया वालों! कमाई वाले हरिरूप मौजूदा देहधारी पूरण सतगुरु की रुचि हरे माधव प्रभुराया का नाम जपने की, और हरे माधव प्रभु की रुचि साचे सतगुरु को जपने की है, दोनों ही एक भाव के भावुक हैं, दोनों के आरम्भ समान हैं, कामनाऐं समान भी हैं और नहीं भी। हरिराया की कामना है आत्माओं को रचना में भेजना और भजन सिमरन की कमाई वाले प्रकाशमय सतगुरु की कामना है उन्हें निर्मल कर निजघर ले चलना पर ये गहन और यथार्थ वचन हैं, ऐ प्यारों! मन के वायरस होते हैं, यानि जिस कारण आंतरिक उन्नति नहीं हो पाती, भाव प्रेम, अंतर की परम रोशनी के गिलाफ नहीं उतर पाते, इस वायरस के कारण हम अपने इंसानी जीवन का सफला अध्याय नहीं लिख पाते।
जब आप अंतरमुखी साचे पूरण सतगुरु की शरण संगत में आहिस्ते आहिस्ते प्रीत चाव से जुड़ेंगे तो जन्मों के जो मन के वायरस हैं, वो हटना चालू हो जायेंगे।
जिस हरिराया ने काल को रच यह वायरस बनाया है, इस वायरस को दूर करने के लिए उसकी औषधि ही यही है कि सतगुरु साचे की शरण में जाकर अमृत नाम की औषधि लो, भगति कमाओ, बंदगी सिमरन कमाओ और इस औषधि से वायरस को दूर करो। प्यारी संगतों सत्संग के रब्बी वचन आए-
मैं बलिहारा सतगुरु पुरुख पर, तन मन वार सारे द्वंद मिटाए
बिन सतगुरु मन का रोग न उतरै, नाहिं अवर बिन सतगुरु के कुंजी हथ
भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु तो सुरति आतम को अजायब अनुभवी वचन प्रकाश देते हैं कि यह सुरति कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे पड़ाव में पड़ी और उलझी है। भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु, भजन बेपरवाही अलस्ती मौज में, अपनी गहबी आँख से भक्तों, ज्ञानियों-ध्यानियों या जुबानी आतमज्ञानियों, ब्रम्हज्ञानियों की सुरति को भी जगाते हैं। आज यह प्रकाश, हाज़िर दीवान में सर्व आत्माओं को खुलकर बक्शा जाता है, कहा-
सतगुरु आखन सुरति दरशाया, अंतर घट में नूर खिलाया
साधारण इन्सानों या किसी भी अन्य जीव को इतनी ताकत नहीं कि कमाई वाले पूरण सतगुरु की थाह पा सके। भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु के प्रभुमय मुख से खुद निज अकह परम शास्त्र, सद्ग्रंथ बहते है, परम रब्बी वाणीयां बहती हैं। हरे माधव हरिराया की प्यारी अंशी आत्माओं! जीवात्माओं के उद्धार वास्ते ऐसे परम दरगाही वचन वाणीयां हाज़िरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी के प्रभुमय भजन मुख से अनवनरत बहती हैं।
हरे माधव यथार्थ संतमत वचन उपदेश 37 में सतगुरु महाराज जी फरमाते हैं, ऐ शिष्य! ब्रम्ह के, ज्ञान-ध्यान के संवाद से आपकी आत्मा नहीं सुलझ पायेगी। संवाद से तो जड़-चेतन की गांठें अधिक गाढ़ी और टेढ़ी हो जाती हैं। जो भजन सिमरन के भंडारी हैं, उनके दिव्य मुख से दिव्य वाणियाँ बहती हैं, आप अपनी सुरति की तार उनकी वाणियों में टिकाओगे तो जड़-चैतन्य की गांठें भी खुलेंगी और दिव्य आँख भी जागृत हो उठेगी। फिर सही मायने में ऐ शिष्य तुम ब्रम्हज्ञानी हो पाओगे। केवल ब्रम्ह की चर्चाओं में मत उलझना, भजन भाव में रत्त रहना, पूरण सतगुरु के चरण कमलों में रमे रहना।
साहिबान जी फरमाते हैं, इस शरीर के अंदर एक दिव्य साम्राज्य, दिव्य शाश्वत विरासत जरूर है जो ज्ञान के द्वारा बिल्कुल कथी नहीं जाती, ज्ञान के द्वारा कथने से अहम की दीवार खड़ी हो जाती है, उस विरासत को केवल हरिराया सतगुरु की अपार किरपा से ही पाया जाता है। बाबा! यह देही केवल और केवल किराए का एक आलीशान बंगला, ड्यूपलैक्स, महल, प्राचीन ऐतिहासिक किला है, इससे अधिक न कुछ था, न है, न कुछ रहेगा। अब ऐसी चीज़ को हम संसारी जगत में कमाते हैं जिससे हम अपना घर या हाट या अपनी चीज़ ले सकें, या हम अपने लिए और अपनो के लिए कोई सुखद दुनिया बना सकें, यानि रोजी रोटी कपड़ा और मकान। वैसी कमाई वैसा वर्तण करते हैं। ऐ रब के अंशों! आतम की भी कोई खुराक है, आतम का भी कोई घर है, कोई ढक कप्पड़ है। हम आपको यही तो कहते हैं कि ऐसी कोई अपने निजघर के लिए पूंजी कमाओ, तोषा इकट्ठा करो, ऐसी तार प्रीत पुरनूर सतगुरु से जोड़ो जो आपको अपना हक देने की ताकत रखते हैं, बाकी हमारी कोई लेनदारी थोड़ी है, इंसान अपने मन में भारी देनदारी समझ बैठा है। तभी तो सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी यूं भजन भाव में प्रेम प्रीत से कहते-
कछु लेना न देना, मगन रहना
खेवटिया से मिले रहना
हरिराया लख बणाई चौपड़, साचा सतगुरु चौपड़ तोड़ी अजूनी रंग फैलाया
हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी फरमाते हैं कि पारब्रम्ह प्रभुराया भवसागर को बनाता है और मद-माया के भारी सैलाब में रूह को भेज देता है। अज्ञान के जाले खुद बनाता है, जनम-मरण के जाल खुद रचता है। मैला विकारी रंग भी खुद जड़ता है और चौरासी की तख्ती भी खुद ही लगा देता है।
तालाब में बहती हुई लहरें होती रहती हैं, हवाओं झोंको से, इसी तरह हमारे मन पर भारी विचारों रूपी चंचलता के घाव होते रहते हैं। इसी तरह हरिराया ने यह विचारों का जाल रचा एवं बिछाया है, अब बिचारी मीन रूपी आतम की हीन दशा हुई। जिसे संभालने के लिए पुरनूर सतगुरु सांचे सतगुरु धरा पर अवतरित होते हैं।
कामिल पुरुख सतगुरु, रूह आतम को अजन्मा कर देते हैं, भवसागर में फंसी आतम रूपी मीनों के फंदे काट देते हैं, रूहों से भगति करा, प्रेम-प्रीत करा अपनी शरण ओट में रख भवसागर से उबार लेते हैं।
हरिराया छुप लुक भरमा, मैं खोज-खोज ताको भरमा
मैं बलिहारा सतगुरु पुरुख पर तन मन वार सारे द्वंद मिटाए
कमाई वाले सतगुरु, अनन्त पारब्रम्ह के संग साथ इस तरह इकनिष्ठ हैं, जैसे फूल में खुशबू और खुशबू में फूल। ऐसे सतगुरु, निष्काम अकर्ता भाव से समस्त विश्व के कण-कण में, घट-घट में अपनी करुणा बरसाते हैं। कमाई वाले सतगुरु की पवित्र संगति से, सत्संग से हमारी आतम से कर्ता-कर्म, दृष्टा-दृष्य का भेद, गिलाफ उतर जाता है। बाकी प्रसाद उनमुन है, गूढ़ है, कमाकर ही समझेंगे। साचा पूरा सतगुरु हमें अंतरमुखी भक्ति का उच्च अधिकारी बना देता है, ऐसा करुणामय प्रसाद वह हमें बक्शता है। हरिराया सतगुरु परम पुरुख के ईश्वरीय ऐश्वर्य की प्रगट मूरत-सूरत हैं, वह प्रीत का रसीला जीवन मुक्त पुरुख है। सत्संग की धुर वाणी में आया-
मैं बलिहारा सतगुरु पुरुख पर, तन मन वार सारे द्वंद मिटाए
बिन सतगुरु मन का रोग न उतरै, नाहिं अवर बिन सतगुरु के कुंजी हथ
संपूर्ण बलिहार न्यारे सतगुरु पुरुख पर, साचे सतगुरु पर, तन मन बलिहार ही बलिहार। मन विचारों का द्वंद छोड़, चंचल मन के सारे तंदे छोड़, केवल साचे सतगुरु की शरण में बलिहार, कहा-
मैं बलिहारा सतगुरु पुरुख पर, तन मन वार सारे द्वंद मिटाए
ऐसे साचे सतगुरु सारे तंदों को काट कर आतम को प्रकाशमय कर देते हैं एवं मनोहर परम लीलामय भेद रचकर आतम रूहों को तार देते हैं। बलिहार ही बलिहार ऐसी अनुपम लीलाओं के सृजनहार सतगुरु पर। प्यारी संगतों! भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु, सर्व आत्माओं रूहों को अपनी पवित्र ओट छाया शरण में रख रहमतें बरसाते हैं। यह कोरा भ्रम कोई न पाले कि सतगुरु एक वर्ग के हैं, वे तो सर्व मंगलकारी, सर्वत्र सर्वव्यापक हैं। धरती की कोई कौम जाति नहीं और नाहीं अथाह साचे सतगुरु की, आकाश की कोई कौम जाति नहीं और नाहीं भजन सिमरन के भंडारी विराट सतगुरु की। गुलाब के फूल या इत्र को ही ले लो, उसकी खुशबू की कोई जाति वर्ग नहीं, ऐसे ही प्रभुराया की खुशबू में महकते चहकते हरिराया सतगुरु की कोई कौम जाति नहीं। पूरण सतगुरु अजात रूप हैं, अजन्मी प्रकाश ज्योत है, वे सर्व आत्माओं के लिए हैं, इसलिए जाति-वर्ग-कौम की हदों से ऊपर उठ, साचे सतगुरु की शरण दीवान में बस योग्यता और कोरा हृदय लाकर, सतगुरु दर्शन, सतगुरु शबद के द्वारा अपनी आतम को सोध सकते हैं।
दयावान सतगुरु, करुणावश, सर्वमांगल्य भाव से, शरण में आए जीवों, प्रेमी भक्तों का उद्धार करते हैं, पल-पल संभाल करते हैं, बस जीव पूरण श्रद्धा, पूरण समर्पण, पूरण भाव, पूरण प्रीत, पूरण प्रेम से श्रीचरणों में रमा रहे। साचे सतगुरु की शरण संगति ही एकमात्र साधन है निजघर जाने का, हरिराया प्रभु ने जो रचना चौपड़ बनाई उससे उबरने का।
इस वास्ते माता सहजो बाई जी साचे पूरण सतगुरु की वडियाई को हरी प्रभु से बेअंत अधिक बताते हुए कहती हैं-
राम तजूं पर गुरु न विसारूं, गुरु के सम हरी को न निहारूं
हरी ने जनम दियो जग माहिं, गुरु ने आवागमन छुड़ायो
हरी ने पांच चोर दियो साथा, गुरु ने लेइ छुड़ाए अनाथा
हरी ने रोग भोग उरझायो, गुरु जोगी कर सभै छुटायो
हरी ने करम मर्म भरमायो, गुरु ने आतम रूप लखायो
हरी ने मो सूं आप छुपायो, गुरु दीपक दै ताहिं दिखायो
फिर हरी बंध मुक्ति गति लाए, गुरु ने सबही भरम मिटाए
चरनदास पर तन मन वारूं, गुरु न तजूं हरी को तज डारूं
इसलिए, हरी से बड़े हरि सतगुरु हैं। सत्संग शबद वाणी की अंतिम तुक में फरमान आया, जी आगे-
।। महिमा क्या सतगुरु की साधो, हरी से बड़े हरि हर सतगुरु है ।।
।। साचा सतगुरु शाह पातशाह, भगित धर भंडार दे, साचे रतन नाम का भंडारी ।।
।। कहे दास ईश्वर, लीला न कथी जाए साचे सतगुरु की ।।
।। हरे माधव सुन विनय हमार, इह मन होए साचे सतगुरु संतै चरण रवाला ।।
पूर्णता के धनी, मालिक-ए-कुल होकर भी अज़ीज़ी निमाणे भाव से आप हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी विनय प्रार्थना, पुकार, अरदास अकह रूप सतगुरु से विनय करने का सलीका दे रहे हैं-
कहे दास ईश्वर, लीला न कथी जाए साचे सतगुरु की
हरे माधव सुन विनय हमार, इह मन होए साचे सतगुरु संतै चरण रवाला
ऐ हरे माधव करतार के अंशों! बिना साचे सतगुरु के आतम को प्रकाश नहीं मिल सकता और बिना साचे पूरण सतगुरु के तो संतों, आतम को अंतरघट में न कुछ सूझ, न समझ, न भाव बन पाता है, तो फिर कैसे न्यारा भगवन घट अंतर में आए, वह न्यारा भगवन भी तो विवश है क्योंकि चाबी साचे पूरन सतगुरु के हथ है यानि यूं कहें, पूरण सतगुरु जिस भंडार गृह की चाबी लेके बैठे हैं उनके भंडार गृह में परमात्मा भी आ जाता है।
महिमा क्या सतगुरु की साधो, हरी से बड़े हरि हर सतगुरु है
साचा सतगुरु शाह पातशाह, भगित धर भंडार दे, साचे रतन नाम का भंडारी
हरे माधव यथार्थ संतमत वचन उपदेश 153 में सतगुरु साहिबान जी फरमाते हैं कि भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु ने सर्वभाषी जीवों के लिए, कल्याणमय अंतरमुखी सतगुरु शबद बंदगी का अर्शी हाट खोला है, बस शर्त है, पात्रता, प्रेमाभक्ति, अटूट श्रद्धा, नाम बंदगी का अभ्यास, साधसंगत यानि सतगुरु शरण, सत्संग, न लोक लाज की परवाह, न मान-सम्मान की चाह। हरिराया सतगुरु की मेहर कृपा की दात, प्रेमी भक्तों पर अनवरत बरसती है, बस हमें पात्रता बनाए रखनी है।
सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी प्यारे वचन फरमाते कि पूरण सतगुरु भजन सिमरन के भण्डारी पुरुख के श्री चरणों के प्रेमी शिष्य, भगत चातक बनो। प्रेम ही न्यारे ईश्वर की जात है और प्रेम ही न्यारे ईश्वर की देन है। प्रेम ही न्यारे ईश्वर की ऐश्वर्य सत्ता है। ऐ प्राणी! याद रख, प्रेम ही न्यारे ईश्वर का रंग है। इसलिए सतगुरु प्रेमा भक्ति का दिव्य पथ पकड़ो, सतगुरु के प्रेम का रास्ता पकड़ो जो कि आप सतगुरु बाबा नारायणशाह साहिब जी ने सिंधी वचनों में कहा, आपजी ने कहा-
गुरुअ बिना गत न, शाह बिना पत न
बिन सतगुरु मन का रोग न उतरै, नाहिं अवर बिन सतगुरु के कुंजी हथ
साचा सतगुरु शाह पातशाह, भगित धर भंडार दे, साचे रतन नाम का भंडारी
आप सच्चेपातशाह जी फरमाते, समस्त संतापों का निवारण करने के लिए केवल और केवल भजन सिमरन के भण्डारी सतगुरु की ओट शरण, सेवा चाकरी, बंदगी और श्रीदर्शन ही है। साधसंगत जी! बर्फ की वादियों को देख ठंड उभर पड़ती है, लू के मौसम में सैर सपाटा कर ठंडे पानी की याद आती है, यह हम अपने जीवन काल में अनुभव करते हैं, इसी तरह पूरण सतगुरु का दर्शन कर हमें हरे माधव अकह परमेश्वर की याद, उनके अंश होने की याद आती है। पूरण सतगुरु के दर्शन कर यह ज्ञात होता है कि संसार सराया है और जिस प्रभु से हम बिछड़े हैं, उस अकह प्रभु के प्रगट रूप पूरण सतगुरु हैं।
भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु का दर्शन कर आतम आनंदित हो उठती है। ऐसे कमाई वाले सतगुरु का दर्शन जीव को दुखों, कष्टों, कलेषों से उबार लेता है। ऐसे श्रीदर्शन से आतम सार भजन का सुख पा लेती है और भवसागर से पार हो जाती है।
Our soul rejoices by procuring the Darshana of the possessor of Bhajan Simran True Master. Such pious Darshana liberates us from sorrows, miseries and agitations. The soul attains the ultimate state of meditation and crosses over the worldly ocean with such pious Darshana.
जो भगत सतगुरु श्रीचरनन प्रीत के मतवाले हैं, भौंरे हैं, वे हर पल अपने प्यारा सतगुरु को अंग-संग सहाई पाते हैं। हाजिरां हुजूर सतगुरु साहिबान जी, रूहों भक्तों की पुकार सुन उनकी किस तरह संभाल करते हैं, किसी की प्रत्यक्ष रूप में, किसी की अप्रत्यक्ष रूप में, अनगिनत ऐसी रहमतों के, सार संभाल के ज़िक्र हम सत्संग में और कई प्रेमी भक्तों से सुनते हैं। न्यारे प्रभुवर सतगुरु बाबल की अनंत महिमायें जुबां से, लिपि से कैसे बयान हों! आज के सत्संग फरमान में उल्हासनगर निवासी प्रेमी भगत श्री इंद्रलाल रोहरा एवं उनकी धर्मपत्नी पद्मादेवी पर बरसी हुजूर साहिबान जी की अपार करुणा मेहर का ज़िक्र, हरे माधव अमृत वचन भांगा साखी उपदेश 186 में श्रवण करें जी। संगतां जी! मेहर करुणा लीलाओं को श्रवण कर हमें अपना भगति भाव बढ़ाना है, चरण प्रीत बढ़ानी है।
25 जनवरी 2017 को महाराष्ट्र उल्हासनगर के निवासी श्री इंद्रलाल रोहरा एवं उनकी धर्मपत्नी पद्मादेवी ने सेवक बब्बल कटारिया जी से फोन पर कहा, हमारे मन की आस है, हुजूर बाबाजी के पावन दरस की, अपने गुनाहों की बक्शीश वास्ते श्री चरण कमलों में आना है, हमें अपने गुनाहों की माफी की आस है। सेवक बब्बल ने कहा, कि सतगुरु साहिबान जी इल्लाही मौज में अक्सर जंगल एकान्त तपवास में जीवतारण हेतु भ्रमण के लिए जाते हैं, अभी हुजूर साहिबान जी जंगल में हैं, पता नहीं कब वापस आना होगा, जब बाबाजी का माधवनगर आना होगा, मैं आपको जानकारी दे दूंगा।
श्री इंद्रलाल रोहरा एवं उनकी धर्मपत्नी पद्मा देवी रोहरा, को अपनी भूलों के लिए बक्शाना था, सो उन्हें चैन न था, हर पल उन्हें सतगुरु दर्शन की आस थी सो उन्होंने 27 जनवरी 2017 की टिकट करवाई माधवनगर कटनी के लिए और सेवक को जानकारी दी कि हम लोग 28 जनवरी को सुबह कटनी पहुँच जायेंगे। सतगुरु साहिबान जी के श्रीदर्शन की विरह प्यास हमें बहुत तड़पा रही है, अगर हमारा विश्वास प्रेम निह सच्चा है, तो दयावान बाबल जी हमें जरूर दर्शन देंगे।
वे प्रेमीजन 28 जनवरी को सुबह 12.30 बजे माधवनगर कटनी पहुँचे, सेवादार के घर में नहा धोके गुरु दरबार साहिब आए। माथा टेकने के बाद सेवादारों ने उनसे कहा, भोजन प्रसाद ग्रहण करें परन्तु वे कहने लगे कि हमें सतगुरु साहिबान जी के दर्शन के बगैर कुछ भी ग्रहण नहीं करना है, हमारा जीवन उनकी ही देन है, आज बाबाजी की मेहर रहमत से ही हम इस संसार में हैं, फिर भी हम नाशुकरे जीवों ने मेहर रहमतों को बिसार दिया था। हम अपनी भूलें खतायें बक्शाने आए हैं, वे जार-जार रोने लगे। सेवादारों ने पानी पिलाते हुए पूछा, कैसी भूलें? हथ जोड़ सेवकों को हरिराया सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की मेहर रहमत का ज़िक्र सुना रहे, विरह प्रीत में रूह रमी हुई, उस माताजी ने बताया कि आज से लगभग 06-08 माह पूर्व उल्हासनगर में ही मैं अपने भाई के घर गई थी, वहाँ पर उसके घर का निर्माण कार्य चल रहा था, उस वक्त मैं एक स्लैब छज्जे के नीचे खड़ी थी, वह भारी स्लैब जो गिट्टी कांक्रीट लोहे की राडों से बना था, अचानक भरभरा कर मेरे ऊपर आ गिरा जिससे मुझे भारी चोटें आईं और मैं बेहोश हो गई। तत्काल ही मुझे मुम्बई की हॉस्पिटल में ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने बिना विलंब के इलाज चालू किया। मेरी रीढ़, पैर और हाथ की हड्डियों में कई फ्रैक्चर आए जिन्हें डॉक्टरों ने देखके कह दिया कि मेरा बचना मुश्किल है। मेरे परिवार वाले जार-जार रोने लगे।
चूंकि डॉक्टरों ने मुझे जवाब दे दिया था, कि मेरा जीवन कुछ दिनों का शेष है, मेरे परिवार वाले बहुत दुखी थे कि मेरेे बच्चों के सिर से माता का साया उठ जायेगा। मेरा इलाज चल रहा था, मैं हर पल सतगुरु बाबाजी को याद करती, उनकी वाणियाँ भजन अरदास सुनती।
जब मैं हॉस्पिटल में थी, हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी का विशाल सत्संग उल्हासनगर में आयोजित होना था। बाबाजी जब भी उल्हासनगर आते, मैं अपने पूरे परिवार सहित उनके दर्शन दीदार करने जरूर जाती थी पर उस दिन मेरी ऐसी स्थिति न थी, मैं मन ही मन रो रही थी और अरदास कर रही थी, हे सतगुरु जी, हे बाबल जी! क्या आज आपके सुहिणे दर्शन मुझे नहीं होंगे? मैंने अपने पतिदेव को कहा कि आप पूरे परिवार के साथ सत्संग में जायें और बाबाजी के दर्शन कर मेहर आशीष ले आएं। मेरा पूरा परिवार शाम को सत्संग में गया, विनय अर्ज की। सांईजन ने प्रसाद देते हुए फरमाया, भला होगा, भला होगा। रात्रि में मैं हॉस्पिटल में अरदास सुन रही थी और मन ही मन विनय प्रार्थना कर रही, हे सतगुरु जी! अब आपजी का आसरा है, आप ही का भरोसा है, मेरा और कोई नहीं। यह विनती करते-करते मुझे नींद आ गई। नींद में मैंने देखा कि आप हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी अपनी मेहर दया का हाथ मेरे सिर पर रख फरमाए, आप चिंता न करें, जल्दी ठीक हो जायेंगे। फिर आगे यह कौल भी फरमाए कि ठीक होने के बाद आपको माधवनगर कटनी शरण साधसंगत में आ सेवा कर नाम भगति कर जीवन स्वांस लेखे लगाएं जी। मैंने कहा, जी बाबाजी! मैं ज़रूर आऊँगीे, जी बाबाजी! मैं ज़रूर आऊँगीे, और मेरी नींद खुल गई। मैंने मन ही मन सतगुरु जी का शुकराना किया और सुबह अपने पति को स्वप्न की सारी बात बताई, उन्होंने सतगुरु श्री स्वरूप के आगे नतमस्तक हो हथ जोड़ हमने मन्नत की कि हम माधवनगर, सतगुरु श्रीचरणों में जायेंगे, तन मन आतम से सतगुरु श्रीचरण छांव में रहकर सेवा भगति कमाएंगे। सांईजी के पावन दर्शन कर मेहर आशीष पायेंगे।
हाजिरां हुजूर सांईजन की अपार रहमत हुई, अगली सुबह उठते ही मेरे स्वास्थय में बड़ी तेजी से सुधार होने लगा और एक सप्ताह के अंदर ही मैं पूरी तरह ठीक हो गई, मैं अपने पैरों पर चलने-फिरने लगी। यह देख डॉक्टर भी हैरान हो गए, इतनी शीघ्र रिकवरी हो गई। संगतां जी! हाजिरां हुजूर बाबाजी की अपार दया रहमत, कि जिसे डॉक्टरों ने जवाब दे दिया कि आपका जीवन कुछ ही दिन शेष है, पर सांईजन की कृपा से वह माता पूरी तरह स्वस्थ हो गई और चलने फिरने लगी।
बिन सतगुरु मन का रोग न उतरै, नाहिं अवर बिन सतगुरु के कुंजी हथ
साचा सतगुरु शाह पातशाह, भगित धर भंडार दे, साचे रतन नाम का भंडारी
हाजिरां हुजूर सतगुरु साहिबान जी की दया कुर्ब देख मेरा परिवार के सभी सदस्य हुजूर बाबलों का कोटि-कोटि शुकराना करने लगे, मैंने सभी से कहा, कि मेरे हुजूर बाबल बड़े दयालु है, कृपा के सागर हैं, उन्होंने मेरी पुकार सुन ली। अब हमें माधवनगर चलना है सतगुरु दर्शन और शुकराना करने। सबने कहा कि हाँ कुछ दिनों में चलेंगे। हम संसारी जीव मन के कहे अगले सप्ताह, अगले सप्ताह कह कर टालते गए और संसारिक कार्य व्यवहार, व्यापार में इतना मशगूल हो गए कि हमने सतगुरु बाबाजी को जो वचन दिया था, वह पूरा नहीं किया, हमने उस वचन को विसार दिया, हम माधवनगर नहीं गए। हम भुलणहार जीव हैं।
दात पियारी विसारियां दातार
समय बीतता गया, सन् 2017 में मेरे बेटे की तबियत बिगड़ गई, हमने कई डॉक्टरों को दिखाया पर कोई फायदा न हुआ। छ माह हमने कई जगहों से इलाज करवाया पर फायदा न हुआ। फिर हमारे रिश्तेदारों में से किसी ने बताया कि नगर में एक बड़े महात्मा आए हैं, वो जड़ी-बूटी एवं अन्य उपाय देते हैं जिससे कई लोग ठीक हो रहे हैं। हम भी अपने बेटे को उस महात्मा के पास ले गए, पर वह महात्मा जी आँखें बंद कर कुछ पल मौन रहे, फिर उन्होंने कहा, ‘‘आपने कोई वचन कौल दिए हैं अपने पीरों से’’।-2 आपने अपने सतगुरु को कोई वचन दिया था जिसे आपने पूरा नहीं किया। मन्नत की थी न।-2 तो सुनो, जब तक आप उन वचन कौल को पूरा नहीं करते, मन्नत पूरी नहीं करेंगे, तब तक यह बालक ठीक नहीं होगा। उन महात्मा जी के मुख से ये सुन हम हतप्रभ रह गए, तभी हमें याद आया कि हमने हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी से वचन कौल किए थे कि मेरे ठीक होने के बाद हम पूरा परिवार माधवनगर कटनी आयेंगे और श्रीचरणों में तन मन आतम से सेवा करेंगे, चरण भगति, नाम भगति प्रभु रूप सतगुरु का श्रीदर्शन कर, उनकी पावन छांव में अपना जीवन सफला मंगलमय करेंगे। हमें अपनी भारी भूल का एहसास हुआ, कि अपने बाबलों को जो वचन दिया था वह हमने पूरा ही नहीं किया। हमने महात्मा जी को सतगुरु साहिबान जी की मेहर रहमत और अपनी मन्नत वाली बात कह सुनाई। महात्मा जी ने कहा, माधवनगर वाले पीर बड़ी कमाई वाले हैं, दयालु करुणावान पीर हैं। उनकी चरण-शरण कभी न छोड़ना। इधर उधर की भटकन छोड़ो, बेटा! सतगुरु जी के श्रीचरणों में जाकर अपने गुनाह बक्शाओ। बेटा! मन्नत पूरी अवश्य किया करो, शुकराना किया करो, श्रीचरणों में तन मन आतम से सेवा भगति कर जो मन्नत की है पूरी करो। ये तो आपके पीर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी की दया मेहर है जो आपके परिवार पर दया मेहर का हाथ रख संभाल रखा है नहीं तो बड़ी अनहोनी ही होनी थी। सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी दुखभंजन दयाल हैं।
हमने महात्मा जी को धन्यवाद किया और घर आकर सेवक बब्बल को फोन किया और दर्शन की व्याकुलता बताई, फिर तत्काल टिकट माधवनगर कटनी के लिए करवाई और पूरा परिवार आज सतगुरु जी के श्रीचरणों में माफी की भीख मांगने, मन्नत पूरी करने आए हैं। बाबाजी दया करें, हमारी खतायें माफ करें। यह ज़िक्र सुना परिवार रो रहा।
गुरुदरबार साहिब में बैठ रोहरा परिवार नम आँखों से मन ही मन साहिबान जी को पुकार रहे थे, बाबाजी दया करें, हम भुलनहारों गुनहगारों को माफी बक्शें। हम भुलणहार जीव सिवाए भूलों गुनाहों के और कर भी क्या सकते हैं, हम निआसरों के आप ही तो आसरे हैं। प्यारी संगतों! घट-घट के जाननहार, करुणा के सागर हुजूर साहिबान जी की अथाह करुणा मेहर बरसी। सांईजन अपने प्रेमियों की विरह दर्शन की ऐसी भारी उत्कण्ठता देख, जंगल से एक दिन पूर्व ही माधवनगर लौट आए थे। रूहों की पुकारें सुन आप हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी दरबार साहिब पधारे, पूरा परिवार आपजी के श्रीचरणों में दण्डवत कर अश्रुनीर बहाए अपनी भूल बक्शाने लगा। आप साहिबान जी ने करुणामय दृष्टि से निहारकर, बालक को आशीष देकर माता पद्मादेवी, इन्द्रलाल जी एवं पूरे परिवार को निहाल कर दिया और फरमाए, सेवा करें, सेवा करें, भोजन प्रसाद ग्रहण करें, भला होगा, भला होगा। हुजूर महाराज जी के श्रीचरणों में पूरे परिवार ने नामदान की अर्जी लगाई। संगतां जी! आप सतगुरु साहिबानों की अनन्त करुणा मेहर प्रेमी रूहों पर बरसते हम सभी ने देखी हैं, बेशुमार करुणा विरद मेहर सार संभाल भगत प्रेमियों पर की है।
अपने सेवक की आप पत राखै, ता की गत मित कोई न लाखै
जा कउ अपनी करे बक्शीश, ता का लेखा न गने जगदीश
भगत वत्सल हाजिरां हुजूर सतगुरु साहिबान जी, सर्व सांझी संगतों, अपने प्यारे भक्तों की, शिष्यों की प्रार्थना पुकार सुन सदा सार संभाल करते हैं, अनगिनत ऐसे रहमतों के, सार संभाल के ज़िक्र हम सत्संगों में एवं प्रेमी भगतों से सुनते हैं और स्व अनुभव भी करते हैं। ऐसी मेहर रहमतों के ज़िक्र श्रवण कर भाव भक्ति को गाढ़ा करें।
महिमा क्या सतगुरु की साधो, हरी से बड़े हरि हर सतगुरु है
प्यारी संगतों! इस संसार को चलाने वाली एक अदृश्य सत्ता है जिसे हम पारब्रम्ह कहते हैं जो कण-कण में व्याप्त है और कण-कण से परे भी है। हरिराया सतगुरु व पारब्रम्ह अभेद रूप हैं। केवल भजन-सिमरन के प्रताप से आलोकित, परमत्वमय हरिराया सतगुरु ही जीवात्माओं को वह सोझी व दृष्टि बक्शते हैं जिससे जीव अपने अंतर गुप्त परमात्मा के परम विराट श्रीदर्शन कर सकता है। ऐसे तत्वदर्शी हरिराया सतगुरु की मंगलमय संगति से लाग प्रीत स्नेही जोड़ रखना, उनकी प्रभुमय वचनो-वाणीयों को शिरोधार्य कर सतगुरु-भगति, सेवा-बंदगी, प्रेमा-प्रीत नीजारी भाव से, कमाना और बलिहार भाव से अंतर आतम में मंगलकारी भाव में भीगना सतगुरु पर्व का महातम है।’
साचा सतगुरु शाह पातशाह, भगित धर भंडार दे, साचे रतन नाम का भंडारी
आज के सत्संग के शुद्ध मक्खन से कोई न कोई एक कण वचन अपने जीवन में ज़रूर उतारें, श्रवण मनन निद्यासन की प्रक्रिया से ज़रूर गुज़रें और यह विनय पुकार करें, हे भजन सिमरन के भंडारी सतगुरु! मेहर करो, दयालु दाता रहम करो, अपनी निर्मल आशीष की शीतल छांव सभी को बक्श, गरीबनवाज़ मालिकां जी, हरे माधव बाबाजी।
।। कहे दास ईश्वर, लीला न कथी जाए साचे सतगुरु की ।।
।। हरे माधव सुन विनय हमार, इह मन होए साचे सतगुरु संतै चरण रवाला ।।
हरे माधव हरे माधव हरे माधव