यह अटल सत्य है कि, दिव्य महान विभूतियाँ महान रूहानी कार्य तथा परमार्थी उद्देश्य की पूर्ति के लिए संसार में आती हैं। वे रूह को बाहरी दुनिया से ध्यान हटाकर, अंतर में अपने परमात्मा से मिलाना चाहते हैं। वे किसी धर्म, मज़हब को, न तोड़ते हैं, न नया बनाते हैं। वे तो आत्मा, परमात्मा का आंतरिक रिश्ता जोड़ने आते हैं। पूर्ण संत सतगुरु अगर अपना प्रकाश एवं वाणियां जीव जगत के मध्य प्रगट नहीं करें, तो साधारण सा इन्सान कैसे जानें, कैसे पहचाने। जीव की न वो कमाई है, न ही ध्यान है। जीव तो सारा दिन मोह-माया में फंसा रहता है।
वे अपने वचनों-वाणियां द्वारा आत्मा को निजघर की याद कराते हैं कि ऐ आतम! तू ईश्वर का अंश है, तू उस प्रभु साहिब को अपने अन्दर देख सकता है, बात कर सकता है, वो तेरी सुनेगा, तू उसकी सुनेगा। पर मन के विकारों ने तुझसे तेरा असल स्वरूप भुला दिया है। इनसे ऊपर उठ, बाहरमुखी मार्गों को छोड़, अंतरमुखी मार्ग को पकड़। सेवा, सत्संग, सिमरन से जुड़कर ही ऐ आतम, तू उस साहिब में मिल सकता हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र, वैश्य, यह सभी के लिए, एक ही साचा उपदेश है, यही हरे माधव परमार्थी साझा रूहानी चक्र है।
हाजिरां हुजूर सतगुरु बाबा ईश्वरशाह साहिब जी के अवतरण के पावन दिन 18 नवंबर को, हर वर्ष माधवनगर एवं अन्य नगरों, गाँवों, कस्बों, देश-विदेश की संगतें ‘‘अवतरण दिवस’’ के रूप में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाती हैं।