आज इस कलिकाल में कच्चे ज्ञान का आडंबर चहूं ओर फैला है। जीव भटक जाता है, उन्हें भान ही नहीं की पूरण सत्य की राह कौन सी है। पर समय-समय पर स्वयं पारब्रम्ह परमेश्वर, जीवों की, अपने बच्चों की यह दयनीय दशा देख, परम दयाल दुखभंजन सतगुरु रूप में धरा पर प्रगट होते हैं। जब जीव ऐसे कमाई वाले हरिराया सतगुरु की पूरण साधसंगत में आते हैं, उनकी शरण में जब उन्हें पूरण शरण, पूरण सत्य, एकस के भेद के वचन, पूरण रहनुमाई सुहेली नदर प्राप्त होती है, तो उनकी रुह जागृत होती है। प्रभु रूप पूरण सतगुरु जड़ चेतन की गाँठें खोलने वास्ते, चैतन्य शबद से आतम को ऐसे अभ्यास की विधि जुगत बक्शते हैं कि प्रभु की अंशी रुहें मेहनत करें, अभ्यासी बन गुरुप्रीत, चरणप्रीत धार सच्चे नाम की कमाई करें, जड़ ज्ञान नहीं, चैतन्य के नूर को खिलाएं।