जब से परमात्मा ने सृष्टि की रचना की है, तब से ही एक ही अचल व्यापक विधान है कि जब तक इन जीवात्माओं को पूर्ण कामिल पुरुख की दरगाही संगति प्राप्त नही होती तब तक आतम ठौर नही पाती और जनम मरण का पीड़ादायक सिलसिला चलता रहता है। इस काल माया के चक्र से जीवात्माओं को मुक्त करा, उसे हरे माधव प्रभु में एकाकार कराने का परम व्यापक सामर्थ्य केवल भजन सिमरन के भंडारी हरिराया सतगुरु में ही है अन्य किसी में नहीं, जो जीवों को काल की व्याधियों से उबार उनके अंतर रखे गुप्त परम अमृत आनंद कोष को प्रगट करके उस अचल व्यापक सत्ता के शाहूकार हरे माधव साहिब में लीन कर देते हैं। ऐसे अमृत रूप हरिराया सतगुरु की पावन सोहबत में आतम को रंगाने व बलिहार जाने का महान पर्व है सतगुरु पर्व।
हरिराया सतगुरु की पावन सोहबत में अलौकिक रुहानी निधियाँ अनायास ही बरसती हैं, आवश्यकता है कि जीव आतम सुपात्र बन,उन के श्रीवचनों को अंतःकरण में उतारें, श्रीचरणों की सेवा-बंदगी में प्रीत बिठाये। इससे जीव आतम का जीवन नवचेतना, सकारात्मकता व आनंद से भर उठता है व राह-ए-रूहानी रोशन हो जाती है।